मंगलवार, 17 मार्च 2009

मौत तू इसतरह आ !!


इस तरह आ..

सुन मौत!तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!
ज़र्रे की तरह मुझे उठा ले जा
कोई आवाज़ हो ना
पत्ता कोई बजे ना
चट्टानें लाँघ के दूर लेजा !
किसीको पता लगे ना
डाली कोई हिले ना
आ,मेरे पास आ,
एक सखी बन के आ,
थाम ले मुझे
सीनेसे लगा ले,
गोदीमे सुला दे,
थक गयी हूँ बोहोत,
मीठी सी लोरी,
गुनगुना के सुना दे!
मेरी माँ बन के आ ,
आँचल मे छुपा ले !

1 टिप्पणियाँ:

परमजीत बाली said...

आप से एक निवेदन,आप निराशावादी मत बनें।जीवन में उतार-चड़ाव तो आते-जाते रहते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी माँ बन के आ ,
    आँचल मे छुपा ले !
    सच में आजकल कुछ ऐसे ही ख्याल मन में आते हैं...
    सुंदर कविता है... बहुत अची लगी.. सच कहूँ तो सहारा सी है...
    आपने जी मेरी होसला अफजाई की उसके लिए बहुत शुक्रिया...
    आप भी बहुत सुंदर लिखती हैं...
    मीत

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  2. एक सखी बन के आ,
    थाम ले मुझे
    सीनेसे लगा ले,
    गोदीमे सुला दे....
    बहुत सुंदर लिखती हैं...

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