Tuesday, July 22, 2008
जल उठी" शमा....!"
पेशे खिदमत अँधेरा किया,
मैंने खुदको जला लिया,
रौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
पर सुना, चंद राह्गीरोंको
थोड़ा-सा हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
शमा
शायद आइन्दा ज़्यादा लगन से लिख पाउंगी...अब तो कुछ ज़रूरी कामोने घेर रखा है,जो नज़रंदाज़ नही किए जा सकते!!
6 टिप्पणियाँ:
-
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
--बहुत उम्दा रचना...बधाई.. -
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
बहुत बड़ी बात कह गयी आप.....सारा सार यही छिपा है -
=^..^=
मोह्तरमा,
ग़र बदतमीज़ी में शुमार न हो, तो अर्ज़ करूँ ?
चंद हरुफ़ों व नुक्तों में रद्दोबदल की ग़ुंज़ाइश मालूम होती है,
इस सफ़े पर नमूदार होने वाला हर कोई उर्दूदाँ तो न होगा । मसलन चराघों को चराग़ों वा सेहर को सहर के तौर पर नुमाँया किया जाता, तो बेहतर तरीके से दिल तक पहुँचने की सूरत बन जाती ! -
achcha likha hai
-
"मैंने खुदको जला लिया,
रौशने राहोंके खातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
पर सुना, चंद राह्गीरोंको
थोड़ा-सा हौसला ज़रूर मिला...."
बहुत प्रेरक पंक्तियाँ है। आप आगे भी इसी प्रकार राहों को रौशन करती रहें, यही कामना है। -
"मैंने खुदको जला लिया,
रौशने राहोंके खातिर ,
बहुत सुंदर दील को छुने वाली रचना !! आभार
मैंने खुदको जला लिया,
जवाब देंहटाएंरौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला.....
बहुत सुंदर रचना .......
अब सेहर होनेको है ,
जवाब देंहटाएंये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
Wow! Kya baat hai... Long Live this Shama...