"मान गयी तुझे अए ज़िंदगी,
तू नही तो कुछभी नही!
क्या चीज़ है तू ,तुझे पता नही,
तू है तो है वफ़ा, तू नही ,
मौत भी कहाँ !के तू है मिलती,
कभी, कभी, मौत तो है हरजाई!
तू दे गर इजाज़त,
तभी आ सके वो, तू कहे रुक,
तो क्या मजाल के आगे बढे ,
एक क़दम भी...नही,नही,
हरगिज़ नही, हरगिज़ नही....!
तुझे चाहें कोई
तो नज़र है आती,
मौत को चाहें हम कितनाभी,
उसे फर्क पड़ता नही,
वो बिन तेरे चाहे, मिलती नही!!
वो इतनी पेश कीमती नही!!"
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