सोमवार, 8 जून 2009

मेरी लाडली.....

" तुझसे जुदा होके,
जुदा हूँ,मै ख़ुद से ,
यादमे तेरी, जबभी,
होती हैं नम, पलकें मेरी,
भीगता है सिरहाना,
खुश रहे तू सदा,
साथ आहके एक,
निकलती है ये दुआ!

ये क्या मोड़ ले गयी
ज़िंदगी तेरी मेरी?
कहाँ थी? कहाँ गयी?
लगता है डर सोचके,
के आसमान हमारे,
जुदा हो गए हैं कितने!

जब सुबह होती है तेरी,
मेरी शाम सूनी-सी
रातमे ढलती रहती
किरणों का किसी,
अब इंतज़ार नही,
जहाँ तेरा मुखड़ा नही,
वो आशियाँ मेरा नही,
इस घरमे झाँकती
किरणों मे उजाला नही!
चीज़ हो सिर्फ़ कोई ,
उजाले जैसी, जोभी,
मुझे तसल्ली नही!

वार दूँ, दुनिया सारी,
मेरी, तुझपे ,ओ मेरी,
तू नज़र तो आए सही,
कहाँ है मेरी लाडली,
मुझे ख़बर तक नही!!
ये रातें भीगीं, भीगीं,
ये आँखें भीगी, भीगी,
कर लेती हूँ बंदभी,
तू यहाँसे हटती नही...!
बोहोत याद आती है लाडली,
कैसे भुलाऊँ एक पलभी,
कोई हिकमत आती नही...!
लाड़ली मेरी, लाडली,
मंज़ूर है रातें अंधेरी,
तुझे हरपल मिले चाँदनी ....

शमा....एक माँ.....

4 टिप्‍पणियां:

  1. ek maa ki beti ke liye tadap ka itna sashakt varnan kiya hai ki aankh mein aansoo aa gaye.

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  2. शमाजी माँ बच्चों के लिए ताउम्र दुआ करती है तडपती है ,मेरी बेटी भी होस्टल में है कविता पढ़कर आँखे भर आई मन बेटी के लिए तडप गया ,बधाई

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  3. शमा जी,

    बहुत अच्छी कविता जो अपनी भावनाओं में पाठक को खींच ले जाती है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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