शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

दिलकी राहें....

दिलकी राहें.........

बोहोत वक़्त बीत गया,
यहाँ किसीने दस्तक दिए,
दिलकी राहें सूनी पड़ीं हैं,
गलियारे अंधेरेमे हैं,
दरवाज़े हर सरायके
कबसे बंद हैं !!
पता नही चलता है
कब सूरज निकलता है,
कब रात गुज़रती है,
सुना है, सितारों भरी ,
रातें भी होतीं हैं!
चाँद भी घटता बढ़ता है,
शफ्फाक चांदनी, रातों में,
कई आँगन निखारती है,
यहाँ दीपभी जला हो,
ऐसा महसूस होता नही....
उजाले उनकी यादोंके,
हुआ करते थे कभी,
अब तो सायाभी नही,
ज़माने गुज़रे, युग बीते,
इंतज़ार ख़त्म होगा नही...
कौन समझाए उसे?
वो किसीका सुनती नही.....
प्रदीप मानोरिया ने कहा…

bahut sundar kavitaayen padhee shama jee , choti kavita gahre bhav saral shabdavali behatareen ... shukriyaa
aapke sarthak lekhan hetu subhkamnaaye
pradeep manoria
094 251 32060

निर्झर'नीर ने कहा…

chand shabdon mein bebashi ko khoob saheja hai aapne ..
ab tak aapka gadh padha par kavita bhi gahre bhaav liye hue hai

1 टिप्पणी: