इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?
वो गीत सुनाऊं कैसे,
जो तूभी गाए?
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
ना कागज़ है, ना क़लम है,
दास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
उतारूँ कैसे?
कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?
वो गीत सुनाऊं कैसे,
जो तूभी गाए?
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
ना कागज़ है, ना क़लम है,
दास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
" bahut hi shandar rachana ke liye aapko badhai .gazab ka aagaz hai aapki kalam me ...mann, hawa,pani ...waw...
जवाब देंहटाएं" na kagaz hai ,na kalam hai,
dastaan sunau kaise ?
khatm nahi hoti raahen,
main sambhalu kaise ?"
" kya baat hai ...bahut hi shandar rachana ke liye aur is se bhi jyada...alfaz ki pasandgi ke liye aapko bahut bahut badhai shamaji."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
shama ji happy dashhara .navraatri ki tayari me vyast rahi aur isi wazah se aapse jo kahana hai nahi kah paa rahi ,pahali fursat milte hi jawab dungi tab tak dhayan banaka rakkhi hoon .rachana bahut hi khoobsurat hai .is safar ke kai padav hai ,wahan bhi thaharna hai .phir aati hoon .
जवाब देंहटाएंshama ji
जवाब देंहटाएंnamaskar
deri se aane ke liye maafi
aapki kavitaye to hamesha hi dil ko chooti hai ..kya kahun .. hum sab ke bheetar ek -na-ek daastan chupi hui hai .. jo ki akasar hum shabdo ke zariye kaagaz par utaarte hai ..
bahut acchi aur sacchi kavita ..
meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सुन्दर रचना, अहसासों से पूर्ण.
जवाब देंहटाएंएक बोझसा मन में हैं उतारू कैसे ?
जवाब देंहटाएंजैसे हाथी पे सवार बच्चो को महावत
उतारता हैं / गहरी बात हैं सोचना आप /
आपके शब्द बहुत अच्छे हैं, कविता बेहद अर्थपूर्ण हैं.
धन्यवाद
इतनी बढ़िया कविता और इतना देर से पढ़ पाया क्षमा करें...बहुत बढ़िया रचना..
जवाब देंहटाएंलिखा था कभी रेत पे,
जवाब देंहटाएंहवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
kya khoob kaha hai! wah....
ना कागज़ है, ना क़लम है,
जवाब देंहटाएंदास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
बहुत खूबसूरत भाव सुन्दर शब्दों में-----
हेमन्त कुमार
यही तो तरीका है बोझ उतारने का....
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कविता।
होली आती है और लाती है सपने रंग-बिरंगे...
जवाब देंहटाएंआपके सपनो को करे सच
मेरी है यही शुभकामना होली के इस अवसर पर
मुझको यह रचना रुची.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंbahot sundar likhi hain.
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत सुन्दर कविता |नववर्ष की शुभकामनायें शमा जी |
जवाब देंहटाएंनववर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
जवाब देंहटाएंब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
नव वर्ष पर हार्दिक शुभ कामनाएं |बहुत सुन्दर शब्दों से सजी भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएं:-)