शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

"शमा" को बुझाके....

"शमा"को बुझाके....

अभी, अभी, नेहलाये गए हैं,
सफ़ेद कपडेमे लपेटे गए हैं,
लगता है, मारे गए हैं,
हमें पत्थरोंसे मारनेवालें,
हमपे फूल चढा रहे हैं....
जीते जी हमपे हँसनेवाले,
सर रख क़दमोंपे हमारे,
जारोज़ार रोये जा रहे हैं........
इस "शमा"को बुझाके,
एक और शमा जला रहे हैं....
हमारी परछाईसे डरनेवाले,
क्यों हमें लिपट रहे हैं?
बेशक, हम लाशमे,
तबदील किए जा चुके हैं......
ये क्या तमाशा है?
ऐसा क्यों कर रहे हैं??
शमा

चश्मे नम मेरे....

चश्मे नम मेरे....

परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....

चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......

शमा

3 comments:

'sammu' said...
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mark rai said...

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
kaaphi badhiya likha hai ..dil me utar gayi ye rachna..

Shama said...

Pehli post hata dee hai kyonki usme naamkaa spelling galat tha...shayd wo kisee aurke liye thee, jo yahan aa gayi..maafee chahti hun..!

दूर रेह्केभी क्यों....

दूर रेह्केभी ......

दूर रेह्केभी क्यों
इतने पास रहते हैं वो?
हम उनके कोई नही,
क्यों हमारे सबकुछ,
लगते रहेते हैं वो?
सर आँखोंपे चढाया,
अब क्यों अनजान,
हमसे बनतें हैं वो?

वो अदा थी या,
है ये अलग अंदाज़?
क्यों हमारी हर अदा,
नज़रंदाज़ करते हैं वो?
घर छोडा,शेहेर छोडा,
बेघर हुए, परदेस गए,
और क्या, क्या, करें,
वोही कहें,इतना क्यों,
पीछा करतें हैं वो?

खुली आँखोंसे नज़र
कभी आते नही वो!
मूंदतेही अपनी पलकें,
सामने आते हैं वो!
इस कदर क्यों सताते हैं वो?
कभी दिनमे ख्वाब दिखलाये,
अब क्योंकर कैसे,
नींदें भी हराम करते हैं वो?

जब हरेक शब हमारी ,
आँखोंमे गुज़रती हो,
वोही बताएँ हिकमत हमसे,
क्योंकर सपनों में आयेंगे वो?
सुना है, अपने ख्वाबों में,
हर शब मुस्कुरातें हैं वो,
कौन है,हमें बताओ तो,
उनके ख्वाबोंमे आती जो?
दूर रेह्केभी क्यों,
हरवक्त पास रहेते हैं वो?
शमा

एक हिन्दुस्तानीकी ललकार, फिर एकबार....!

एक हिन्दुस्तानिकी ललकार, फिर एक बार !

कुछ अरसा पहले लिखी गई कवितायें, यहाँ पेश कर रही हूँ। एक ऑनलाइन चर्चामे भाग लेते हुए, जवाब के तौरपर ये लिख दी गयीं थीं। इनमे न कोई संपादन है न, न इन्हें पहले किसी कापी मे लिखा गया था...कापीमे लिखा, लेकिन पोस्ट कर देनेके बाद।

एक श्रृंखला के तौरपे सादर हुई थीं, जिस क्रम मे उत्तर दिए थे, उसी क्रम मे यहाँ इन्हें पेश कर रही हूँ। मुझे ये समयकी माँग, दरकार लग रही है।

१)किस नतीजेपे पोहोंचे?

बुतपरस्तीसे हमें गिला,
सजदेसे हमें शिकवा,
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
वोभी तय करनेमे गुज़ारे !
आख़िर किस नतीजेपे पोहोंचे?
ज़िंदगीके चार दिन मिले...

फ़सादोंमे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इंसान थे जो मरे!
उन्हें तो मौतने बचाया
वरना ज़िंदगी, ज़िंदगी है,
क्या हश्र कर रही है
हमारा,हम जो बच गए?
ज़िंदगीके चार दिन मिले...

देखती हमारीही आँखें,
ख़ुद हमाराही तमाशा,
बनती हैं खुदही तमाशाई
हमारेही सामने ....!
खुलती नही अपनी आँखें,
हैं ये जबकि बंद होनेपे!
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..!


२) खता किसने की?


खता किसने की?
इलज़ाम किसपे लगे?
सज़ा किसको मिली?
गडे मुर्दोंको गडाही छोडो,
लोगों, थोडा तो आगे बढो !
छोडो, शिकवोंको पीछे छोडो,
लोगों , आगे बढो, आगे बढो !

क्या मर गए सब इन्सां ?
बच गए सिर्फ़ हिंदू या मुसलमाँ ?
किसने हमें तकसीम किया?
किसने हमें गुमराह किया?
आओ, इसी वक़्त मिटाओ,
दूरियाँ और ना बढाओ !
चलो हाथ मिलाओ,
आगे बढो, लोगों , आगे बढो !

सब मिलके नयी दुनिया
फिर एकबार बसाओ !
प्यारा-सा हिन्दोस्ताँ
यारों दोबारा बनाओ !
सर मेरा हाज़िर हो ,
झेलने उट्ठे खंजरको,
वतन पे आँच क्यों हो?
बढो, लोगों आगे बढो!

हमारी अर्थीभी जब उठे,
कहनेवाले ये न कहें,
ये हिंदू बिदा ले रहा,
इधर देखो, इधर देखो
ना कहें मुसलमाँ
जा रहा, कोई इधर देखो,
ज़रा इधर देखो,
लोगों, आगे बढो, आगे बढो !

हरसूँ एकही आवाज़ हो
एकही आवाज़मे कहो,
एक इन्सां जा रहा, देखो,
गीता पढो, या न पढो,
कोई फ़र्क नही, फ़ातेहा भी ,
पढो, या ना पढो,
लोगों, आगे बढो,

वंदे मातरम की आवाज़को
इसतरहा बुलंद करो
के मुर्दाभी सुन सके,
मय्यत मे सुकूँ पा सके!
बेहराभी सुन सके,
तुम इस तरहाँ गाओ
आगे बढो, लोगों आगे बढो!

कोई रहे ना रहे,
पर ये गीत अमर रहे,
भारत सलामत रहे
भारती सलामत रहें,
मेरी साँसें लेलो,
पर दुआ करो,
मेरी दुआ क़ुबूल हो,
इसलिए दुआ करो !
तुम ऐसा कुछ करो,
लोगों आगे बढो, आगे बढो!!


३)एक ललकार माँ की !

उठाये तो सही,
मेरे घरकी तरफ़
अपनी बद नज़र कोई,
इन हाथोंमे गर
खनकते कंगन सजे,
तो ये तलवारसेभी,
तारीख़ गवाह है,
हर वक़्त वाकिफ़ रहे !

इशारा समझो इसे
या ऐलाने जंग सही,
सजा काजलभी मेरी,
इन आँखोमे , फिरभी,
याद रहे, अंगारेभी
ये जमके बरसातीं रहीं
जब, जब ज़रूरत पड़ी

आवाज़ खामोशीकी सुनायी,
तुम्हें देती जो नही,
तो फिर ललकार ही
सुनो, पर कान खोलके
इंसानियत के दुश्मनों
हदमे रहो अपनी !

चूड़ियाँ टूटी कभी,
पर मेरी कलाई नही,
सीता सावित्री हुई,
तो साथ चान्दबीबी,
झाँसीकी रानीभी बनी,
अबला मानते हो मुझे,
आती है लबपे हँसी!!
मुझसे बढ़के है सबला कोई?

लाजसे गर झुकी,
चंचल चितवन मेरी,
मत समझो मुझे,
नज़र आता नही !
मेरे आशियाँ मे रहे,
और छेद करे है,
कोई थालीमे मेरी ,
हरगिज़ बर्दाश्त नही!!

खानेमे नमक के बदले
मिला सकती हूँ विषभी!
कहना है तो कह लो,
तुम मुझे चंचल हिरनी,
भूल ना जाना, हूँ बन सकती,
दहाड़ने वाली शेरनीभी !

जिस आवाज़ने लोरी,
गा गा के सुनायी,
मैं हूँ वो माँ भी,
संतानको सताओ तो सही,
चीरके रख दूँगी,
लहुलुहान सीने कई !!
छुपके वार करते हो,
तुमसे बढ़के डरपोक
दुनियामे है दूसरा कोई?

1 comments:

हिमांशु पाण्डेय said...

संतानको सताओ तो सही,
चीरके रख दूँगी,

बहुत सुन्दर। एसी न जाने कितनी लाइने हैं जॊ दिल कॊ छूती है साथ ही मन कॊ कचॊटती भी है। आपकी रचना के लिए बधाइयां। बहुत अच्छा प्रयास

ज़हेरका इम्तेहान....

ज़हेरका इम्तेहान.....

बुज़ुर्गोने कहा, ज़हरका,
इम्तेहान मत लीजे,
हम क्या करे गर,
अमृतके नामसे हमें
कोई प्यालेमे ज़हर दीजे !
अब तो सुनतें हैं,
पानीभी बूँदभर चखिए,
गर जियें तो और पीजे !
हैरत तो ये है,मौत चाही,
ज़हर पीके, नही मिली,
ज़हेरमेभी मिलावट मिले
तो बतायें, अब क्या कीजे?
तो सुना, मरना हैही,
तो बूँदभर अमृत पीजे,
जीना चाहो तभी ज़हर पीजे!

शमा

मत काटो इन्हें...!

मत काटो इन्हें !!

मत काटो इन्हें, मत चलाओ कुल्हाडी
कितने बेरहम हो, कर सकते हो कुछभी?
इसलिए कि ,ये चींख सकते नही?

ज़माने हुए,मै इनकी गोदीमे खेलती थी,
ये टहनियाँ मुझे लेके झूमती थीं,
कभी दुलारतीं, कभी चूमा करतीँ,

मेरे खातिर कभी फूल बरसातीं,
तो कभी ढेरों फल देतीं,
कड़ी धूपमे घनी छाँव इन्हीने दी,

सोया करते इनके साये तले तुमभी,
सब भूल गए, ये कैसी खुदगर्जी?
कुदरत से खेलते हो, सोचते हो अपनीही....

सज़ा-ये-मौत,तुम्हें तो चाहिए मिलनी
अन्य सज़ा कोईभी,नही है काफी,
और किसी काबिल हो नही...

अए, दरिन्दे! करनेवाले धराशायी,इन्हें,
तू तो मिट ही जायेगा,मिटनेसे पहले,
याद रखना, बेहद पछतायेगा.....!

आनेवाली नस्ल्के बारेमे कभी सोचा,
कि उन्हें इन सबसे महरूम कर जायेगा?
मृत्युशय्यापे खुदको, कड़ी धूपमे पायेगा!!
शमा

3 comments:

mark rai said...

आनेवाली नस्ल्के बारेमे कभी सोचा,
कि उन्हें इन सबसे महरूम कर जायेगा...
are shama jee..sochna to barason chod diya logo ne ...sochte to jo kutte jaisi haalat aane waali wo nahi aati ... ab to n ghar ke rahege aur n ghaat ke...

creativekona said...

शमा जी ,
आपका कमेन्ट और कविता दोनों पढी ...और निर्णय नहीं ले पा रहा की आपको किस रूप में संबोधित किया जाया .आप ने इतनी अच्छी कविता लिखी ...इतने सुन्दर भावों के साथ ...और खुद को कवि भी नहीं स्वीकार कर रही हैं ...
बात सिर्फ कविता की ही होती तब भी ठीक था ...आप लेख ,संस्मरण ,ललित निबंध सबकुछ लिख रही हैं ...आप ने वाइस ओवर में ये कविता पढी है ...इसका मतलब आप फिल्म या इलेक्ट्रानिक मीडिया से भी जुडी हैं ...कमल की बात है की इतनी ढेर सारी प्रतिभा के होते huye भी आप खुद को lekhika नहीं मान रही हैं ..मैं इतनी देर से नेट पर baithe rahne के bad भी निर्णय नहीं ले पा रहा की आप को क्या maanoon ?
Hemant

खोयी-सी बिरहन....

खोयीसी बिरहन...

खोयीसी बिरहन जब
उस ऊँचे टीलेपे
सूने महल के नीचे
या फिर खंडहर के पीछे
गीत मिलन के गाती है,
पत्थर दिल रूह भी
फूट फूट के रोती है....

हर वफ़ा शर्माती है
जब गीत वफ़ाके सुनती है।
खेतोमे,खालिहानोमे
अँधेरोंमे याकि
चाँदनी रातोमे,
सूखे तालाब के परे
या नदियाकी मौजोंपे,
कभी जंगल पहाडोंमे
मीलों फैले रेगिस्तानोमे,
या सागरकी लहरोंपे,
जब उसकी आवाज़
लहराती है,
हर लेहेर थम जाती है....

बिजलियाँ बदरीमे
छुप जाती हैं
हर तरफ खामोशी ही
खामोशी सुनायी देती है।
मेरी दादी कहती है
सुनी थी ये आवाजें
उनकीभी दादीने॥

12 comments:

mark rai said...

खेतोमे,खालिहानोमे...
अंधेरोंमे...
चांदनी रातोमे....
shamaa jee mera to jiwan yahi bita hai ..ye sab apna lagata hai ...
कभी जंगल पहाडोंमे....
मीलों फैले रेगिस्तानोमे....
yahi to asali natural beauty hai ...waha aajadi bhi hai ..aur pollution ka koi laphada bhi nahi ...sochta hoon jahan shukun mile wahi swarg hai ...aapne kya likha ..shabd kam pad rahe hai ....aapaka koi bhi url ho mai to dhudh nikaluga...jajba hai shayad...

Rao GumanSingh"Azad" said...

nice line

AAKASH RAJ said...

आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .....

BrijmohanShrivastava said...

एकदो मर्तवा इंटरनेट पर टाईप किया किन्तु ब्लॉग नहीं खुल पाया /आखिर आज गूगल पर टाईप किया /यह ब्लॉग शुरू से नहीं पढ़ा था और वो क्रमश :था अत उसे छोड़कवितायेँ पढी /दिल की राहें, वो घर बुलाता है और यह ""खोई सी बिरहन "" रचनाओं में एक दर्द ,एक कशिश ,एक पीडा ,खोई हुई यादें ,दिल का भटकाव स्पष्ट झलकता है / मसलन पत्थर दिल रूह भी फूट फूट के रोती है (क्षमा करें हमारे यहाँ आत्मा का न तो शरीर होता है न वह हंसती है न रोती है बस शरीर बदलती है खैर ) मेरी दादी कहती है की उनकी दादी ने भी आवाजें सुनी थी मतलब बात कितनी पुरातन हैदूसरी रचना में वह घर स्वप्न में आना जो अब वैसा नहीं है स्पष्ट है घर का पुनर निर्माण हो चुका होगा लेकिन बचपन में जो घर देखा था और जिसकी छवि ध्यान में बसी हुई है वही घर दिखलाई देता है ,यह बात कोई भी लेखक ,विद्वान ,कवि ,साहित्यकार कल्पना से तो कह ही नहीं सकता यह तो वाकई अनुभव की ही बात हैतीसरी बात पहले उनकी यादों के उजाले रहना और अब साया तलक न दिखाई देना -एक ऐसी घुटन ,एक तड़पन ,दिल दुखाने वाली रचनाएँ

BrijmohanShrivastava said...

pahalee laain "the light by a lonely paath wabat hai

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
सुन्दर रचना के लि‌ए बधा‌ई
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
http://www.swapnil98.blogspot.com
रेखा चित्र एंव आर्ट के लि‌ए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ब्लौग जगत में आपका स्वागत है...

श्यामल सुमन said...

अच्छे भाव हैं। कहते हैं कि -

मैं जो गम खा जाता हूँ, मुझको खाये जाता है गम।
और क्या खाऊँगा दुनियाँ भर के गम खाने के बाद।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

mojowrites said...

bahut achchha likha hai aapne.. badhaiyan aur hindi blog jagat main aapka hardik abhinandan..

- Mohan Joshi (MoJo)
http://mojowrites.wordpress.com

Abhishek Mishra said...

हर वफ़ा शर्माती है
जब गीत वफ़ाके सुनती है।
बढ़िया कविता. बधाई.

नारदमुनि said...

bahut sundar, narayan narayan

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

वो घर बुलाता है....

वो घर बुलाता है...

जब,जब पुरानी तस्वीरे
कुछ याँदें ताज़ा करती हैं ,
हँसते हँसते भी मेरी
आँखें भर आती हैं!
वो गाँव निगाहोंमे बसता है
फिर सबकुछ ओझल होता है,
घर बचपन का मुझे बुलाता है,
जिसका पिछला दरवाज़ा
खालिहानोमें खुलता था ,
हमेशा खुलाही रहता था....

वो पेड नीमका आँगन मे,
जिसपे झूला पड़ता था!
सपनोंमे शहज़ादी आती थी ,
माँ जो कहानी सुनाती थी!
वो घर जो अब "वो घर"नही,
अब भी ख्वाबोमे आता है
बिलकुल वैसाही दिखता है,
जैसाकि वो अब नही!

लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,
दिलसे धुआँसा उठता है,
चूल्हातो ठंडा पड़ गया
सीना धीरे धीरे सुलगता है,
बरसती बदरीको मै
बंद खिड्कीसे देखती हूँ
भीगनेसे बचती हूँ....

"भिगो मत"कहेनेवाले
कोयीभी मेरे पास नही
तो भीगनेभी मज़ाभी नही।
जब दिन अँधेरे होते हैं
मै रौशन दान जलाती हूँ
अँधेरेसे कतराती हूँ
पास मेरे वो गोदी नही
जहाँ मै सिर छुपा लूँ
वो हाथभी पास नही
जो बालोंपे फिरता था
डरको दूर भगाता था....

खुशबू अब भी है आती
जब पुराने कपड़ों मे पडी
सूखी मोलश्री मिल जाती
हर सूनीसी दोपहरमे
मेरी साँसों मे भर जाती,
कितना याद दिला जाती ,
नन्ही लडकी सामने आती
जिसे आरज़ू थी बडे होनेके....

जब दिन छोटे लगते थे,
जब परछाई लम्बी होती थी,
यें यादे कैसी होती?
कडी धूपमे ताजी रहती है !
ये कैसे नही सूखती?
ये कैसे नही मुरझाती ?
ये क्या चमत्कार है?

पर ठीक ही है जोभी है,
चाहे वो रुला जाती है,
दिलको सुकूनभी पहुँचाती,
बातेँ पुरानी होकेभी,
लगती हैं कलहीकी
जब पीली तसवीरें,
मेरे सीनेसे चिपकती हैं......

जब होठोंपे मुस्कान खिलती है
जब आँखें रिमझिम झरती हैं
जो खो गया ढूँढे नही मिलेगा,
बात पतेकी मुझहीसे कहती हैं ....
जब, जब पुरानी तस्वीरें,
कुछ यादेँ ताज़ा करती हैं...
हँसते, हँसते भी ,
मेरी आँखें भर आती हैं...

1 टिप्पणियाँ:

NirjharNeer ने कहा…

जो खो गया ढूंढें नही मिलेगा

marmsparshi chitran
bhavnaoN ka ataah gahra sagar.

..
aapne jo shabd likhe hai meri rachnaoN par vo ta_um'r sahejne ki chiij hai,
mai apni sari rachnaoo ka poorn swamitv aapko deta hun ni:sankoch aap jo chahe kareN. ye meri khushkismatii hogi kahin kisi roj mere shabd mujhse achanak takra jaye.

khaksaar ki zarra_navazii ka shuk'rguzaar rahungaa.aapki khushi ki mangal kaamna karta hun.

दिलकी राहें....

दिलकी राहें.........

बोहोत वक़्त बीत गया,
यहाँ किसीने दस्तक दिए,
दिलकी राहें सूनी पड़ीं हैं,
गलियारे अंधेरेमे हैं,
दरवाज़े हर सरायके
कबसे बंद हैं !!
पता नही चलता है
कब सूरज निकलता है,
कब रात गुज़रती है,
सुना है, सितारों भरी ,
रातें भी होतीं हैं!
चाँद भी घटता बढ़ता है,
शफ्फाक चांदनी, रातों में,
कई आँगन निखारती है,
यहाँ दीपभी जला हो,
ऐसा महसूस होता नही....
उजाले उनकी यादोंके,
हुआ करते थे कभी,
अब तो सायाभी नही,
ज़माने गुज़रे, युग बीते,
इंतज़ार ख़त्म होगा नही...
कौन समझाए उसे?
वो किसीका सुनती नही.....
प्रदीप मानोरिया ने कहा…

bahut sundar kavitaayen padhee shama jee , choti kavita gahre bhav saral shabdavali behatareen ... shukriyaa
aapke sarthak lekhan hetu subhkamnaaye
pradeep manoria
094 251 32060

निर्झर'नीर ने कहा…

chand shabdon mein bebashi ko khoob saheja hai aapne ..
ab tak aapka gadh padha par kavita bhi gahre bhaav liye hue hai